वाकई दिलचस्प है अपने आप में यह होना। आख़िर यह सब क्यों न हो, लोकतंत्र है भाई, कोई कुछ भी वह कह और कर सकता है....जब तक उसके काम से किसी और को कोई नुक्सान न हो। या फिर यूँ कह ले की किसी और को न झेलनी पड़े फजीहत। यहाँ पर एक पुरानी बात याद आ रही है की आपकी स्टिक घुमाने की स्वंत्रता वहां से ख़त्म हो जाती है, जहाँ से शुरू हो जाती है किसी दूसरे आदमी की नाक। लेकिन यहाँ तो स्टिक भी घूम रही है और नही भी पहुँच रही है किसी की अस्मिता को चोट......शायद अभी तक।
यहाँ बात मैं करने जा रहा हूँ १२वी शताब्दी से लोगों के लिए आसथा और श्रद्धा का पर्याय बने श्री जगन्नाथ पुरी के मन्दिर की। यहाँ के करीब तीस युआ पुजारियों पर हाल ही रिलीज हुई आमिर खान अभिनीत फ़िल्म गजनी की स्टाइल का इस कदर जादू हुआ की उनने संजय सिघनिया की हेयर स्टाइल ही रख ली। शायद ही इस समय बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो गजनी के आकर्षण की जद में न आते हो। यहाँ जद में आने का मतलब साफ़ है की इसकी एक झलक देखना, न की उसके सिधांतों पर चलना या फ़िर उसकी स्टाइल को आजमाना। स्टाइल को बहुत लोग अपना भी सकते हैं....आख़िर इसमें बुराई क्या है। अपने अलग अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले आमिर का जो हेयर स्टाइल गजनी में दिख रहा है.....उसका असर आजकल एम टीवी प्रोडक्ट पर ज्यादा जोर-शोर से दिख रहा है। यहाँ एम टीवी का मतलब साफ़ है...आधुनिकता का लिबास ओढे या फिर समाज के आईने में अपने को अलग दिखाने का जूनून। यहाँ एम टीवी प्रोडक्ट और मन्दिर के उन तीस पुजारियों में अन्तर तब साफ़ पता चलता है जब उनके-उनके वक्तअव सामने आते हैं। अगर आप किसी एम टीवी प्रोडक्ट से यह बात पूछते हैं की आपने ऐसा क्यों किया तो उनका जवाब साफ़ रहता है की वो आमिर के फेन हैं....लेकिन जब यही जवाब जगन्नाथ मन्दिर के पुजारी देते हैं तो वो गर्व से लबरेज होकर कहते हैं की हमें हेयर स्टाइल पसंद आयी, इसीलिए हमने इसे अपना लिया। इसमे किसी को कोई हर्ज तो नही होना चाहिए। आमिर की हेयर स्टाइल से ओतप्रोत एक पुजारी का कहना है की ये सब देखकर यहाँ आने वाले श्रद्धालू जनों को थोड़ा बहुत अटपटा तो जुरूर लगता है, जब वे हमें धोती पहनकर खड़े होकर पूजा-अर्चना करते हुए देखते हैं। लेकिन हमारी नजर में यह एक सामान्य बात है। पर हमारे इस काम से कोई हमें आमिर खान का भक्त समझ ले, तो यह सरासर ग़लत ही होगा। हम भक्त तो हैं सिर्फ़ भगवान् जगन्नाथ जी के।
यह बदलाव की आंधी जो जगन्नाथ पुरी से चली है, अब देखना यह है की यह कहाँ तक और किसे-किसे अपनी जद में लेती है। इसे ग़लत तो नही ही कहा जा सकता, कम से कम हिन्दुस्तान की सरजमीं पर तो नही ही। इस सरजमीं पर कम से कम धर्म में तो इतनी कट्टरता नही है की, उस पर बॉलीवुड का साया पड़े और शुरू हो जाए तू-तू..मैं...मैं।