Saturday, May 17, 2014

जब मोदी ने कहा, ऐसा पहली बार हुआ है 60-70 सालों में


बीजेपी की जबरदस्‍त जीत के बाद जोश से लबरेज देश के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे नरेंद्र मोदी ने वड़ोदरा में आयोजित रोड शो के बाद जनता को यह विश्‍वास दिलाया कि अब अच्‍छे दिन आ गए हैं.

जनता के सामने मोदी ने जमकर इमोशनल तीर छोड़े. उन्‍होंने कहा कि आपको मुझ पर भरोसा है और मुझे आप पर. इस भरोसे को मैं कायम रखूंगा. उन्‍होंने कहा कि सरकार चलाने के लिए सबका साथ चाहिए और शुभकामनाएं. बकौल मोदी अब सरकार 125 करोड़ देशवासियों की है. आइए जानते हैं जीत के बाद मोदी के पहले संबोधन में क्‍या है पहली बार.

ऐसा पहली बार हुआ है 60-70 सालों में
- किसी नेता की लोकसभा चुनावों में 5 लाख 70 हजार वोटों से जीत हुई.
- जब आजादी के बाद पैदा होने वाला नेता देश संभालेगा.
- जब देश के 125 करोड़ देशवासी सुराज के लिए जिएंगे और मरेंगे नहीं.
- एनडीए को तीन सौ तक जनता ले गई.
- हम मजदूर नंबर वन हैं. मेरे जैसा मजूदर साठ महीनों में नहीं मिलेगा.
16 मई को आजतक में पब्लिश पोस्ट...देखें...जब नरेंद्र मोदी ने कहा, ऐसा पहली बार हुआ है 60-70 सालों में

ये हैं नरेंद्र मोदी की जीत के 10 कारण


पिछले एक साल से एक जगह होकर हजारों जगह नजर आने वाले बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी छा गए हैं. यूपीए सरकार की लकवाग्रस्‍त नीतियों, असफलताओं और सत्‍ता विरोधी लहर ने बीजेपी के लिए इस बार के लोकसभा चुनावों में संजीवनी का काम किया. और इस पर जो रही सही कसर थी, उसे बीजेपी ने गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करके पूरा कर दिया. आइए जानते हैं अपनी आक्रामक और लुभावनी विकास की बातों से जनता को मोहने वाले थ्री डी मोदी की जीत के वो 10 कारण, जिनकी बदौलत आज पूरा माहौल मोदीमय है.

लक्ष्‍य का निर्धारण
पिछले दस सालों से सत्‍ता से दूर रही बीजेपी ने इस बार के लोकसभा चुनावों के लिए साफ-साफ अपने लक्ष्‍य निर्धारित कर रखे थे. बीजेपी नेता सिर्फ और सिर्फ अर्जुन की तरह मछली की आंख पर निशाना लगाए रहे. अधिक से अधिक लोकसभा सीटें अपनी झोली में डालना इनका स्‍पष्‍ट लक्ष्‍य रहा ताकि अगर सरकार बनाने की घड़ी आए तो किसी के आगे हाथ फैलाने की नौबत न आए.

नेता का चयन
कांग्रेस पार्टी की तरह भगवा पार्टी में चुनाव नतीजों के बाद नेता का चयन नहीं होता. यहां पहले से ही गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया गया, जिससे पार्टी और जनता में उनके मायावी व्‍यक्तित्‍व का असर दिखने लगा. नेता का चयन होने से देश दिग्‍भ्रमित नहीं रहा जबकि इसके उलट कांग्रेस में नेता का चयन न होने से पार्टी और उसके समर्थकों दोनों में असमंजस बना रहा. कांग्रेस के लिए नेतृत्‍व का यह खालीपन गंभीर समस्‍या बन गया.

असफलताओं पर निशाना
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार के चुनावों में यूपीए की लकवाग्रस्‍त नीतियों और उसकी असफलताओं को जमकर भुनाया. हर पोस्‍ट और पोस्‍टर में केंद्र सरकार की विफलताओं पर निशाना साधा गया. महंगाई, भ्रष्‍टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दे उठाकर बीजेपी ने समाज के हर तबके को जहां अपने साथ जोड़ने की कोशिश की वहीं यूपीए सरकार को इनसे घेरने की रणनीति बनाई. बढ़ती महंगाई, गिरता विकास दर और घटता विदेशी प्रत्‍यक्ष निवेश जैसे तीर बीजेपी ने अपने तरकश से निकाल यूपीए के खिलाफ चलाए.

जन आंदोलन का लाभ
कांग्रेस सरकार के खिलाफ बढ़ते जन असंतोष का सीधा-सीधा लाभ देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को मिलता दिखा. भ्रष्‍टाचार के खिलाफ समाजसेवी अन्‍ना हजारे का आंदोलन हो या फिर दिल्‍ली की वह रात, जिसमें वहशी दरिंदों ने निर्भया को खून के आंसू रुलाए थे, के बाद उपजे आंदोलन ने बीजेपी को सत्‍तासीन कांग्रेस के खिलाफ लहर और मजबूत करने में काफी मदद की. इसके अलावा एंटी इनकमबेंसी भी बीजेपी के पैर जमाने में काफी लाभप्रद साबित हुई.

युवा जोश को साथ लाया
इस बार के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के दिग्‍गजों का मुख्‍य फोकस युवा वोटर की ओर रहा. बीजेपी का हर धुरंधर इनसे बदलाव लाने की, बेरोजगारी दूर करने की बात करने लगा. बीजेपी के नेताओं ने आक्रामक तरीके से प्रचार कर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया. अक्‍सर बीजेपी की हर रैली में यह सुना जाता था कि कांग्रेस के लिए युवा वोटर हैं जबकि बीजेपी के लिए ये युवा शक्ति हैं. बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी के विकास की बातों, मुहावरों और आकर्षक टिप्‍पणियों से युवा वोटर काफी खिंचे.

वृद्ध नेताओं को साइड किया
बीजेपी ने इस बार के लोकसभा चुनावों में अपनी ही पार्टी के कई वरिष्‍ठ नेताओं को यह स्‍पष्‍ट मैसेज दे दिया कि अब वो बुजुर्ग हो चुके हैं और राजनीति की मुख्‍यधारा से उनके किनारे होने का समय आ गया है. इस कड़ी में पार्टी के दिग्‍गज नेता मसलन लालकृष्‍ण्‍ा आडवाणी, सुषमा स्‍वराज जैसे कइयों की कई बातें सिरे से खारिज कर दी गई. भगवा पार्टी में दो चमकते सितारों ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि जसवंत सिंह जैसे नेता, जो बीजेपी सरकार में विदेश मंत्री रह चुके हैं, उनके पार्टी छोड़ने की नौबत आ गई. मतलब साफ है, सब कुछ नया और चमकता चाहिए.

सोशल मीडिया बिग्रेड
इस बार के आम चुनावों में प्रचार गली और मोहल्‍लों से काफी आगे निकल गया. युवा और साक्षर भारत के लिए इस बार भारतीय जनता पार्टी की सोशल मीडिया बिग्रेड ने फेसबुक और ट्विटर में धमाल ही मचा दिया है. बीजेपी की रैली, प्रचार और पार्टी के मिशन को जबरदस्‍त तरीके से सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाया गया. रैली की लाइव कवरेज और लाइव फोटो देकर बीजेपी की सोशल मीडिया बिग्रेड ने काफी हद तक वोटरों को अपनी ओर आकर्षित किया.

तकनीक का जबर्दस्‍त इस्‍तेमाल
बीजेपी ने इन चुनावों में तकनीक का जबरदस्‍त तरीके से इस्‍तेमाल करके मतदाताओं से संपर्क साधा. अपनी रैलियों का थ्रीडी कवरेज, वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग के जरिए सबसे मीटिंग आदि करके ज्‍यादा से ज्‍यादा अपनी जनहित और केंद्र सरकार की गैरजरूरी नीतियां वोटरों तक पहुंचाईं. चुनाव शुरू होने के बाद देश के तमाम बड़े चैनलों पर पार्टियों के नेताओं को मिली कवरेज पर आई एक रिपोर्ट से पता चला है कि मोदी को अकेले एक तिहाई कवरेज मिली यानी 33 फीसदी समय मिला. दस प्रतिशत अरविंद केजरीवाल को जबकि सोनिया, राहुल और प्रियंका तीनों को 8 प्रतिशत कवरेज मिला.

क्षेत्रीय छत्रपों का साथ
बीजेपी ने अपनी पुरानी रणनीति बदलते हुए इस बार सीधे सीधे क्षेत्रीय छत्रपों के दरवाजों पर दस्‍तक दी. पार्टी के अधिकतर नेता पूरे भारत में क्षेत्रीय दलों से मेल-जोल कायम किए रहे. एक व्‍यक्ति के कारण जहां कुछ दल पार्टी से छिटके हैं तो वहीं कई ने दामन भी थामा है. पार्टी ने अपनी नीति को इस बार थोड़ा लचीला भी बनाया. बीजेपी ने बुधवार को यह स्‍पष्‍ट किया कि चुनाव पूर्व गठबंधन का हिस्सा नहीं रहा कोई भी दल यदि उसे अपना समर्थन देना चाहता है तो उसके लिए पार्टी के दरवाजे खुले हैं.

जनसभाओं का लोक अभियान
बीजेपी के पीएम पद के उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी ने अपने धुंआधार प्रचार अभियान से लोक सभा चुनाव प्रचार का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. मोदी अब तक देशभर में 3 लाख किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर एक तरह का रिकॉर्ड बना चुके हैं. प्रचार के परंपरागत और नए तौर-तरीकों के मिलेजुले स्वरूप के साथ 5827 कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं. बीजेपी ने इसे भारत के चुनावी इतिहास का सबसे बड़ा जनसंपर्क बताया है. मोदी पिछले साल 15 सितंबर से 25 राज्यों में 437 जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं और 1350 3डी रैलियों में भाग ले चुके हैं.
16 मई को आजतक वेबसाइट मे पब्लिश पोस्ट..देखें..ये हैं नरेंद्र मोदी की जीत के 10 कारण

10 साल की UPA सरकार की 10 गलतियां


 भ्रष्‍टाचार, महंगाई से जनता पिछले कई सालों से त्रस्त है. जनता को यह देन कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की है. जितने जानदार तरीके से आज से दस साल पहले कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए यानी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने देश की बागडोर संभाली थी, उतने ही जोरदार तरीके से जनता अब इसे नकारने का मन बना चुकी है. कमजोर नेतृत्‍व, हर मोर्चे में विफलता और त्‍वरित निर्णय न ले पाने का तमगा आज यूपीए के माथे पर दमक रहा है. आइए नजर डालते हैं यूपीए सरकार की दस साल की उन दस भूलों पर, जिन्‍होंने पूरे देश में कांग्रेस विरोधी लहर पैदा की.

गलत नेता का चुनाव
कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी ने 2004 के चुनाव में जीत के बाद खुद प्रधानमंत्री नहीं बन कर अपने वफादार टेक्‍नोक्रैट डॉ. मनमोहन सिंह को पीएम का पद दे दिया. कांग्रेस ने बजाय एक मजबूत नेता चुनने के एक मजबूर नेता चुना, वो भी इसलिए ताकि सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियों और नीतियों में सोनिया का दखल बना रहे. प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह एक विचारक और विद्वान माने जाते हैं. सिंह को उनके परिश्रम, कार्य के प्रति बौद्धिक सोच और विनम्र व्यवहार के कारण अत्यधिक सम्मान दिया जाता है, लेकिन बतौर एक कुशल राजनीतिज्ञ उन्‍हें कोई सहज नहीं स्‍वीकार करता. इनके अलावा यदि कांग्रेस प्रशासनिक निपुणता के अलावा राजनैतिक निपुणता वाले को सत्‍ता सौंपती तो आज की स्थिति कुछ और होती. यूपीए ने जिस नेता को बागडोर सौंपी है, अक्‍सर उनके शासन के दौरान यह नजर आता रहा कि वो कुछ छिपा रहे हैं.

उम्‍मीदों पर सिर्फ बयान
भ्रष्‍टाचार, महंगाई से पिछले कई सालों से जूझ रही जनता की उम्‍मीदों पर यूपीए सरकार की ओर से केवल बयान ही बयान फेरे गए. आम जनता महंगाई का कोई तोड़ तलाशने के लिए कहती तो दिग्‍गज मंत्री यह कहकर अपना पल्‍ला झाड़ लेते कि आखिर हम क्‍या करें. हमारे पास कोई अलादीन का चिराग तो है नहीं. जिस जनता ने इन्‍हें चुनकर भेजा है, उन्‍हें बस यही सुनकर काम चलाना पड़ता कि उनके प्रतिनिधियों के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है, जिसे घुमा दिया और सारी समस्‍याएं दूर हो गईं. समस्‍या सुलझाना तो दूर आग में घी डालने का भी काम कुछ नेताओं ने किया. जैसे कांग्रेसी सांसद राज बब्‍बर ने एक बयान दिया कि आपको 12 रुपये में भरपेट भोजन मिल सकता है.

आंदोलन के प्रति असंवदेनशीलता
देश में बढ़ती अराजकता के खिलाफ यूपीए कार्यकाल के दौरान हुए जन आंदोलनों (मसलन अन्‍ना आंदोलन और निर्भया आंदोलन) को समझने में महानुभाव असफल रहे. इस बात को तो कांग्रेस सरकार के एक कद्दावर मंत्री भी मान चुके हैं. एक बार पत्रकारों के साथ बातचीत में वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने माना था कि 2010-11 सबसे कठिन दिन थे. उन्‍होंने माना कि हमसे कई भूलें हुईं, हमारा लोगों से तालमेल टूट गया था. इसकी वजह यह है कि 2010-11 में दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में भ्रष्टाचार के विरोध में प्रदर्शन हो रहे थे, उस समय लोगों के गुस्से और बदलते हालातों को यूपीए सरकार सही तरीके से समझ नहीं सकी. 2014 के नतीजे इसका नतीजा होंगे.

जनता के प्रति लापरवाही
सोनिया सरकार के हर मंत्रियों पर यह आरोप लगता रहा है कि उनका देश की जनता के लिए रवैया उदासीन भरा रहा है. रक्षा मंत्री एके एंटनी ने संसद में एक ऐसा बयान दिया कि जिससे जनता और देश दोनों शर्मसार हो गए. पुंछ में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या पर एंटनी ने कहा था कि हमलावर पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहने हुए थे, जबकि रक्षा मंत्रालय ने साफ कहा था कि हमलावरों के साथ पाक सैनिक भी थे. पाक को दोषमुक्‍त बताने वाले इस बयान पर जमकर हंगामा मचा था. निर्भया कांड में यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के 'रेप जैसे जघन्‍य अपराध पर बयान नहीं कार्यवाही होनी चाहिए' जैसे बयानों ने जनता के प्रति कांग्रेसियों की लापरवाही को साफ तौर पर उजागर किया है.

बड़े आयोजनों पर बड़े सवाल
जितने बड़े लोग, उतने बड़े काम. आजाद भारत का सबसे बड़ा खेल समारोह कांग्रेस सरकार के ही कार्यकाल में हुआ, जिसमें जमकर नेताओं और अधिकारियों ने लूट मचाई. भ्रष्टाचार की वजह से यह सबसे बड़े घोटाले में तब्दील हो गया है. कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर हर तरफ लूट मची. ऐसा लग रहा कि देश में खेल का नहीं लूट का महोत्सव मनाया जा रहा है. इसके अलावा और भी कई दिग्‍गजों के बड़े कामों ने बड़े नाम किए. चाहे वह 2जी घोटाला हो जिसमें महज 45 मिनट में 1 .76 लाख करोड़ रुपये लूट गए या फिर कोयला घोटाला हो, जिसमें राजनैतिक धुरंधरों के चेहरों पर कालिख पोत दी. जितने ठेके कांग्रेस सरकार के दौरान लिए गए उन सबमें लूट खसोट मची और जमकर सवाल उठे.

आम जनता से दूर रहने का आरोप
कांग्रेस सरकार के दिग्‍गजों पर अक्‍सर यह आरोप लगते रहे कि वो जनता से दूर रहे. बस वो चुनाव के समय ही अपने संसदीय क्षेत्रों में नजर आए. यहां बात औरों की छोडि़ए, कांग्रेस के युवराज और सोनिया गांधी के सुपुत्र राहुल गांधी ही अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में जीतने के बाद बहुत कम गए, ऐसी शिकायतें वहां के बाशिंदों ने उनकी मां सोनिया गांधी से की. इस बार के चुनावों में भगवा पार्टी की लहर कहें या फिर आम आदमी पार्टी की जोरदार दस्‍तक कि कांग्रेस के युवराज मतदान के समय पिछले दस वर्षों में पहली बार अमेठी में मौजूद रहे. जब पार्टी के मुखिया का ये हाल है तो आप अंदाजा लगा सकते है कि बाकी के धुरंधर जनता के लिए कितने समय मौजूद रहे होंगे.

सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप
केंद्र में जिसकी सरकार, उसकी सीबीआई. कांग्रेस सरकार अपने दस सालों के कार्यकाल में हमेशा सीबीआई के दुरुपयोग के लिए विपक्षियों के निशाने में आती रही. जहां इस सरकार को अपनी सत्‍ता जाती दिखी वहीं इसने सीबीआई का पत्‍ता चल दिया. फिर चाहे वो सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव हों या फिर डीएमके नेता स्‍टालिन. यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने के तुरंत बाद सीबीआई की ओर से द्रमुक नेता एमके स्टालिन के आवास पर छापा मारा गया था, जिसे जानकार बदले की कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं. जहां भगवा पार्टी के अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह भी समय समय पर इशरत जहां मुठभेड़ मामले की सीबीआई की जांच को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधते रहे हैं वहीं भ्रष्‍टाचार के खिलाफ बिगुल बजा सरकार की चूलें हिलाने वाले अन्‍ना हजारे भी कांग्रेस पर सीबीआई दुरुपयोग के आरोप मढ़ते रहे हैं.

युवा जोश को साथ लाने में नाकामयाब
राजनैतिक जानकारों की मानें तो यूपीए सरकार युवाओं से काफी दूर रही. इस सरकार ने इन्‍हें साथ लेकर चलने की नहीं सोची जबकि इसके उलट इसकी विरोधी पार्टी बीजेपी इन्‍हें ही अपनी ताकत मान रही है. 18 से 22 साल के करीब 14.93 करोड़ नौजवान 2014 के आम चुनाव में पहली बार वोट देने वाले थे. इन युवाओं के लिए रोजगार का मुद्दा और इसकी चिंता सबसे महत्वपूर्ण रही, जिसमें कांग्रेस सरकार पूरी तरह विफल रही. इन चुनावों में बेरोजगारी अहम मुद्दा रहा. देश के अधिकांश युवजनों की कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की कथनी-करनी में जमीन आसमान के अंतर से मोहभंग की स्थिति है. युवराज राहुल गांधी की आक्रामक भाषण शैली भी युवा वोट बैंक को सम्मोहित नहीं कर पाई है. केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले साल यह माना था कि नाराज युवा, नए मतदाता विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार का कारण है. मंत्री ने यह भी स्‍वीकार किया कि नई पीढ़ी ऐसे नेता चाहती है जो फैसले लें और आम आदमी के हितों के लिए नीतियां बनाएं.

तकनीकी उपयोग से परहेज
अपने मुख्‍य विपक्षी दल बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस पार्टी तकनीकी के उपयोग में 2014 के आम चुनाव में काफी पीछे रही. इस बात को कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने भी स्‍वीकारा. कई नेताओं का कहना है कि उनकी सरकार ने बहुत अच्छा काम किया, लेकिन उसका प्रचार नहीं किया जा सका. राहुल गांधी के करीबी नेताओं ने पिछले दिनों कई टीवी इंटरव्यू में यह बात कही है. बताया जाता है कि कांग्रेस ने राहुल गांधी की इमेज बनाने के लिए करीब पांच सौ करोड़ रुपये खर्च किए लेकिन कवरेज के मामले में ये आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल की भी बराबरी नहीं कर पाए. बीजेपी ने जहां थ्री डी रैली, बेहतरीन कवरेज मैनेजमेंट के सहारे अपनी इमेज चमका ली वहीं कांग्रेस के दिग्‍गज इस मामले में काफी दूर रह गए.

खराब चुनावी रणनीति
2014 के लोकसभा चुनावों में अपने मुख्‍य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले कांग्रेस की चुनावी रणनीति बेहद कमजोर रही. बीजेपी जहां पिछले पांच सालों से इस रणनीति पर जी जान से जुटी थी वहीं कांग्रेस इस विषय में सिर्फ हवा में रहकर ही काम कर रही थी. यूपीए सरकार के टॉप फाइव मंत्रियों में से एक ने खुद हाल में यह माना कि 2009 में बेंगलुरु को छोड़कर कांग्रेस शहरों से मुख्य रूप से जीती थी. कई पिछड़े राज्य जहां यूपीए सरकार ने गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम पर विशेष जोर दिया, वहां से उसे अधिक वोट नहीं मिल पाए थे. ग्रामीण क्षेत्रों से उसके प्रत्याशी कम जीते बजाय शहरी चुनाव क्षेत्रों के. इन बदली स्थिति को देखने के बावजूद उपयुक्त नीतियों को सूत्रबद्ध करने की दिशा में पार्टी पर्याप्त सचेत नहीं हो सकी और वो हाथ पर हाथ धरे बैठे रही. कांग्रेस सरकार के समय हुए घोटालों और असफलताओं को बीजेपी ने जमकर भुनाया.
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