हद है भाई, तुमने तो देखकर फेक दिया। कल मुझे इसका जवाब देना होगा। कुछ ऐसी ही बातें मेरे एक पत्रकार मित्र ने बड़ी ही शिद्दत से मुझसे कहीं। असल में हुआ क्या की उनने मुझे कोई ख़बर दिखायी और मैंने उसे देखकर उसे देने के बजे पास ही टेबल में फेक दी, जिसके जवाब में उनने ये बातें मुझसे कहीं। यहाँ मैं एक चीज पूरी तरह से साफ़ कर देना चाहता हूँ की मैंने उस ख़बर को सिर्फ़ इसीलिए फेका की वह बन चुकी होगी।
मेरे दिमाग में ऐसा करने के पिच्छे सिर्फ़ और सिर्फ़ यही एक पुष्ट कारन था, जिसके जवाब में मुझे ये बातें उनकी तरफ़ से सुनने को मिली। ये कहे हुये शब्द ग़लत भी नही थे, क्योंकि यहाँ बात उनने की जवाबदेही की। जो की शनिवार को दिल्ली में शुरू हुयी भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक में बड़े ही शिद्दत के साथ बीजेपी नेता अरुण शौरी ने वहां मौजूद पार्टी जनों से कहीं। उन्होंने बड़ी ही बेबाकी से कहा की अब तो जवाबदेही तय ही की जानी चाहिए। जिनको जिम्मेदारी दी गयी, उनने अपनी जिम्मेदारी बेहतरीन तरीके से क्यों नही निभायी। काश! मेरे पत्रकार मित्र की तरह वहां भी डर किसी की दांत या फिर किसी की झिद्कन का होता। किसी ने सच ही कहा है की बिन भय होय न प्रीत। शौरी ने सीधे तरह कार्यकारिणी की बैठक से नदारद रहे अरुण जेटली पर निशाना साधते हुए कहा की यदि किसी को किसी काम की जिम्मेदारी सौपी गयी है तो, उसकी जवाबदेही भी तय की जाने चाहिए। सच भी तो है...जवाबदेही तो तय होनी ही चाहिए। बिना जवाबदेही तय किए आप कैसे किसी को आँक सकते हैं या फिर यूँ कह ले की यदि किसी को पुरुष्कृत करना है या दण्डित करना है तो उसके पिच्छे ठोस कारन इसी शब्द के रसातल में ही तो जाकर मिलते हैं। अब वक्त आ गया है की पार्टी के अन्दर हर काम की जवाबदेही तय ही होने चाहिए। शायद यदि जवाबदेही बीजेपी के राजनाथ सिंह और लाल कृष्ण अडवानी ने तय कर दी होती तो शनिवार को राजनाथ सिंह को यह नही कहना पड़ता की पार्टी में विजय और पराजय दोनों की जिम्मेदारी सामूहिक होती है, लेकिन यदि ऐसा ही है की किसी एक को ही हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए तो पार्टी अध्यक्ष के नाते मैं इसे स्वीकारता हूँ। जिस पर इतने दिनों से बवेला मच हुआ है, उसी को टालने के लिए राजनाथ सिंह ने ऐसी बातें कह पार्टी की बैठक में अपना बड़प्पन दिखाया है। जिसने काम नही किया, उसे प्रुश्क्रित किया गया और किसने काम किया उसे किनारे किया गया। लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बावजूद यदि बीजेपी चेतकर अपनी पार्टी में ठीक वैसे ही जवाबदेही तय नही करती, जिस तरह मेर पत्रकार मित्र की तय की गयी है तो उसे एक क्या....दो क्या...बार-बार हार के बाद आयोजित बैठक में दिग्गजों को यही बोलना पड़ेगा की हमारी सोच सिविलिज़शनल पैरामीटर की है। एक या दो चुनाव की हार हमें विचलित नही कर सकती। जरूरत है kई और हार की.....................
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