Friday, December 11, 2009

साजिश नए सिंहासन की

जिसका डर था आखिर वही हुआ...फिर बंटेगा यूपी। अपनी तेजी के लिए जाने जाने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने उत्तर प्रदेश को बांट दिया। इस बार भी सदियों से सुनाई देने वाला नारा लखनऊ की प्रेस कॉन्फ्रेंस में गूंजा कि भाई तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। सूबे को बांटने के लिए हम पूरी तरह से तैयार हैं और हमारे लोग भी। बस देर कर रही है तो केंद्र की सत्तासीन कांग्रेस सरकार। मैं जनता के साथ हूं....जनता जो कहेगी...वो मैं करूंगी। मैं हमेशा से छोटे राज्यों के पक्ष में रही हूं। छोटा राज्य बोले तो बहेगी उसमें विकास की गंगा।

शायद
... भूलना मुश्किल है
मैं अपनी उम्र के 26वें पड़ाव में आकर आज भी एक झटके में यह बोल जाता हूं कि देहरादून तो उत्तर प्रदेश में ही आता है, एक पत्रकार होने के बावजूद भी। यहां पत्रकार शब्द पर ज्यादा जोर इसलिए दे रहा हूं कि कहा जाता है कि इनकी याददाश्त ज्यादा तेज होती है या फिर ये कुछ ज्यादा ही अपडेट होते हैं। फिर झट से अपनी गलती को, जो मेरी जिह्वा और मानस पटल में जम चुकी है, को सुधारने की कोशिश करते हुए बोलता हूं कि देहरादून उत्तराखंड की राजधानी है, जो कब का अलग हो चुका है....उत्तर प्रदेश से। खींच दी गई हैं सरहदों में लकीरें...जो शायद सिर्फ इंसानों के लिए हैं, परिंदों के लिए नहीं।

आदत डाल ही लेनी चाहिए
बंटवारे से मुझे काफी डर लगता है। कारण कुछ और नहीं बल्कि मेरी सबको साथ लेकर चलने की आदत है। सबके साथ रहने की आदत....ये बुरी आदत भी इसीलिए पड़ गई कि मेरा बचपन एक संयुक्त परिवार में बीता है। जिसे अक्सर इंतजार रहता था अपने बड़े परिवार के सदस्यों के आने का, जो कि आज की तारीख में काफी हद तक खत्म हो चुका है। उत्तराखंड की तरह शायद अब मैं हरित प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल को भी अपने चित्त में बैठाने की आदत डाल ही लूं। लेकिन क्या में आपके सामने अपने प्रदेश का नाम बताने में गल्तियां नहीं करूंगा....यूपी की जगह बुंदेलखंड बोलने की आदत डाल लेनी चाहिए।

तो क्या अब वो बुंदेलखंडी बोलेगा
अगर सूबे की मुखिया मुख्यमंत्री मायावती की योजना परवान चढ़ गई और वहां की मासूम जनता उनके बहकावे में आ गई तो मैं अपने आपको कहां का बोलूंगा और लोग मुझे क्या कहकर पुकारेंगे....बाहर जाने पर। मुझे अभी भी यूपी का भइया ही अपने आप को कहलाना पसंद है। मैंने कुछ समय के लिए चंडीगढ़ में पत्रकारिता की, जहां यूपी और बिहारवालों को भइया कहा जाता है। मुझे भी मेरे एक मित्र ने भइया कहा था। उसका कोई गलत मंतव्य नहीं था, इसे कहने को लेकर...मजाक में या फिर जब उसे मुझ पर लाड़ आता था। तो क्या अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो वो मुझे अब बुंदेलखंडी बोलेगा...।

टूटे-फूटे जुड़ाव की साजिश
केंद्र सरकार की ओर से आधी रात को तेलंगाना को पृथक राज्य बनाने की घोषणा और उसके तुरंत बाद मायावती का उत्तर प्रदेश के एक नहीं कई टुकड़े करने की लालसा के पीछे आखिर क्या पेंच है। इसको सिर्फ विकास के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। यह कुछ नहीं एक सियासी चाल है...जनता से टूटे-फूटे जुड़ाव की एक साजिश है, जिसके जरिए वो अगला सिंहासन पाने का सपना देख रही हैं। आज के परिप्रेक्ष्य में थोड़ा गुणाभाग करके देखा जाए तो मायावती की पूर्वांचल और बुंदेलखंड में काफी कम पकड़ है। पश्चिमी उप्र में अजित सिंह की अच्छी खासी पकड़ है, जबकि बुंदेलखंड में कांग्रेस उभरी है।

कांग्रेस का बंटाधार करने का इरादा
सूबे के टुकड़े-टुकड़े करने के उनके बयान से सबसे ज्यादा यदि किसी को क्षति पहुंचाने की कोशिश की गई है, तो वो सिर्फ कांग्रेस को ही। क्योंकि उप्र में इस समय कांग्रेस जी-तोड़ कोशिश में जुटी हुई है अपने आप को मजबूत करने में। अपनी बेअंदाजी के लिए जाने जाने वाली मायावती ने यह कहकर तो पूरी तरह उन लोगों की सहानुभूति अपने पक्ष में कर ली है, जिनने टुकड़े-टुकड़े करने का इरादा पाल रखा है। लेकिन ऐसा बयान देकर और यह बोलकर कि केंद्र पहल करे, हम पूरी तरह से तैयार है....सत्तासीन कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की सीधी-सीधी कोशिश की गई है।

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