Saturday, May 17, 2014

ये हैं नरेंद्र मोदी की जीत के 10 कारण


पिछले एक साल से एक जगह होकर हजारों जगह नजर आने वाले बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी छा गए हैं. यूपीए सरकार की लकवाग्रस्‍त नीतियों, असफलताओं और सत्‍ता विरोधी लहर ने बीजेपी के लिए इस बार के लोकसभा चुनावों में संजीवनी का काम किया. और इस पर जो रही सही कसर थी, उसे बीजेपी ने गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करके पूरा कर दिया. आइए जानते हैं अपनी आक्रामक और लुभावनी विकास की बातों से जनता को मोहने वाले थ्री डी मोदी की जीत के वो 10 कारण, जिनकी बदौलत आज पूरा माहौल मोदीमय है.

लक्ष्‍य का निर्धारण
पिछले दस सालों से सत्‍ता से दूर रही बीजेपी ने इस बार के लोकसभा चुनावों के लिए साफ-साफ अपने लक्ष्‍य निर्धारित कर रखे थे. बीजेपी नेता सिर्फ और सिर्फ अर्जुन की तरह मछली की आंख पर निशाना लगाए रहे. अधिक से अधिक लोकसभा सीटें अपनी झोली में डालना इनका स्‍पष्‍ट लक्ष्‍य रहा ताकि अगर सरकार बनाने की घड़ी आए तो किसी के आगे हाथ फैलाने की नौबत न आए.

नेता का चयन
कांग्रेस पार्टी की तरह भगवा पार्टी में चुनाव नतीजों के बाद नेता का चयन नहीं होता. यहां पहले से ही गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया गया, जिससे पार्टी और जनता में उनके मायावी व्‍यक्तित्‍व का असर दिखने लगा. नेता का चयन होने से देश दिग्‍भ्रमित नहीं रहा जबकि इसके उलट कांग्रेस में नेता का चयन न होने से पार्टी और उसके समर्थकों दोनों में असमंजस बना रहा. कांग्रेस के लिए नेतृत्‍व का यह खालीपन गंभीर समस्‍या बन गया.

असफलताओं पर निशाना
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार के चुनावों में यूपीए की लकवाग्रस्‍त नीतियों और उसकी असफलताओं को जमकर भुनाया. हर पोस्‍ट और पोस्‍टर में केंद्र सरकार की विफलताओं पर निशाना साधा गया. महंगाई, भ्रष्‍टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दे उठाकर बीजेपी ने समाज के हर तबके को जहां अपने साथ जोड़ने की कोशिश की वहीं यूपीए सरकार को इनसे घेरने की रणनीति बनाई. बढ़ती महंगाई, गिरता विकास दर और घटता विदेशी प्रत्‍यक्ष निवेश जैसे तीर बीजेपी ने अपने तरकश से निकाल यूपीए के खिलाफ चलाए.

जन आंदोलन का लाभ
कांग्रेस सरकार के खिलाफ बढ़ते जन असंतोष का सीधा-सीधा लाभ देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को मिलता दिखा. भ्रष्‍टाचार के खिलाफ समाजसेवी अन्‍ना हजारे का आंदोलन हो या फिर दिल्‍ली की वह रात, जिसमें वहशी दरिंदों ने निर्भया को खून के आंसू रुलाए थे, के बाद उपजे आंदोलन ने बीजेपी को सत्‍तासीन कांग्रेस के खिलाफ लहर और मजबूत करने में काफी मदद की. इसके अलावा एंटी इनकमबेंसी भी बीजेपी के पैर जमाने में काफी लाभप्रद साबित हुई.

युवा जोश को साथ लाया
इस बार के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के दिग्‍गजों का मुख्‍य फोकस युवा वोटर की ओर रहा. बीजेपी का हर धुरंधर इनसे बदलाव लाने की, बेरोजगारी दूर करने की बात करने लगा. बीजेपी के नेताओं ने आक्रामक तरीके से प्रचार कर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया. अक्‍सर बीजेपी की हर रैली में यह सुना जाता था कि कांग्रेस के लिए युवा वोटर हैं जबकि बीजेपी के लिए ये युवा शक्ति हैं. बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी के विकास की बातों, मुहावरों और आकर्षक टिप्‍पणियों से युवा वोटर काफी खिंचे.

वृद्ध नेताओं को साइड किया
बीजेपी ने इस बार के लोकसभा चुनावों में अपनी ही पार्टी के कई वरिष्‍ठ नेताओं को यह स्‍पष्‍ट मैसेज दे दिया कि अब वो बुजुर्ग हो चुके हैं और राजनीति की मुख्‍यधारा से उनके किनारे होने का समय आ गया है. इस कड़ी में पार्टी के दिग्‍गज नेता मसलन लालकृष्‍ण्‍ा आडवाणी, सुषमा स्‍वराज जैसे कइयों की कई बातें सिरे से खारिज कर दी गई. भगवा पार्टी में दो चमकते सितारों ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि जसवंत सिंह जैसे नेता, जो बीजेपी सरकार में विदेश मंत्री रह चुके हैं, उनके पार्टी छोड़ने की नौबत आ गई. मतलब साफ है, सब कुछ नया और चमकता चाहिए.

सोशल मीडिया बिग्रेड
इस बार के आम चुनावों में प्रचार गली और मोहल्‍लों से काफी आगे निकल गया. युवा और साक्षर भारत के लिए इस बार भारतीय जनता पार्टी की सोशल मीडिया बिग्रेड ने फेसबुक और ट्विटर में धमाल ही मचा दिया है. बीजेपी की रैली, प्रचार और पार्टी के मिशन को जबरदस्‍त तरीके से सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाया गया. रैली की लाइव कवरेज और लाइव फोटो देकर बीजेपी की सोशल मीडिया बिग्रेड ने काफी हद तक वोटरों को अपनी ओर आकर्षित किया.

तकनीक का जबर्दस्‍त इस्‍तेमाल
बीजेपी ने इन चुनावों में तकनीक का जबरदस्‍त तरीके से इस्‍तेमाल करके मतदाताओं से संपर्क साधा. अपनी रैलियों का थ्रीडी कवरेज, वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग के जरिए सबसे मीटिंग आदि करके ज्‍यादा से ज्‍यादा अपनी जनहित और केंद्र सरकार की गैरजरूरी नीतियां वोटरों तक पहुंचाईं. चुनाव शुरू होने के बाद देश के तमाम बड़े चैनलों पर पार्टियों के नेताओं को मिली कवरेज पर आई एक रिपोर्ट से पता चला है कि मोदी को अकेले एक तिहाई कवरेज मिली यानी 33 फीसदी समय मिला. दस प्रतिशत अरविंद केजरीवाल को जबकि सोनिया, राहुल और प्रियंका तीनों को 8 प्रतिशत कवरेज मिला.

क्षेत्रीय छत्रपों का साथ
बीजेपी ने अपनी पुरानी रणनीति बदलते हुए इस बार सीधे सीधे क्षेत्रीय छत्रपों के दरवाजों पर दस्‍तक दी. पार्टी के अधिकतर नेता पूरे भारत में क्षेत्रीय दलों से मेल-जोल कायम किए रहे. एक व्‍यक्ति के कारण जहां कुछ दल पार्टी से छिटके हैं तो वहीं कई ने दामन भी थामा है. पार्टी ने अपनी नीति को इस बार थोड़ा लचीला भी बनाया. बीजेपी ने बुधवार को यह स्‍पष्‍ट किया कि चुनाव पूर्व गठबंधन का हिस्सा नहीं रहा कोई भी दल यदि उसे अपना समर्थन देना चाहता है तो उसके लिए पार्टी के दरवाजे खुले हैं.

जनसभाओं का लोक अभियान
बीजेपी के पीएम पद के उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी ने अपने धुंआधार प्रचार अभियान से लोक सभा चुनाव प्रचार का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. मोदी अब तक देशभर में 3 लाख किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर एक तरह का रिकॉर्ड बना चुके हैं. प्रचार के परंपरागत और नए तौर-तरीकों के मिलेजुले स्वरूप के साथ 5827 कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं. बीजेपी ने इसे भारत के चुनावी इतिहास का सबसे बड़ा जनसंपर्क बताया है. मोदी पिछले साल 15 सितंबर से 25 राज्यों में 437 जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं और 1350 3डी रैलियों में भाग ले चुके हैं.
16 मई को आजतक वेबसाइट मे पब्लिश पोस्ट..देखें..ये हैं नरेंद्र मोदी की जीत के 10 कारण

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