Sunday, December 28, 2008

ठेंगे पर सुश्री के आदेश....

सूबे में क़ानून-व्यवस्था दिन पर दिन बिगड़ती ही जा रही है। पिछले कुछ दिनों से चला माया का जादू अब गायब होने की कगार पर आ रहा है। पार्टी की मुखिया का आदेश जब भला उनके विधायक ही न माने तो भला औरो की बात ही क्या करनी। इंजिनियर मनोज गुप्ता की हत्या से प्रान्त में पैदा हुई तपिश अभी ठंडी भी नही हुई थी की चंदे के बाबत मायावती के सुनाये गए फरमान की धज्जिया ख़ुद उनके विधायक उडाने में जुट गए है।

पूरे मुल्क की मुखिया बन्ने का सपना पाले मायावती से एक भारत का अभिन्न प्रदेश का राज नही संभल पा रहा है। खुदा न खस्ता मायावती को भारतीयों ने एक भी मौका दे दिया तो अभी तो उत्तर प्रदेश में ही धन उगाही हो रही है, फिर तो पूरे देशवासियों को ही इसके लिए अपनी कमर कस लेनी पड़ेगी। मनोज की हत्या को बीते एक हफ्ते का भी समय नही बीता, फिर शुरू हो गयी धन उगाही। बहरहाल इस बार की धन उगाही में किसी की मौत नही हुई वरन उड़ादी गयी है बीएसपी सुप्रीमो मायावती के आदेशो की धज्जियाँ। मीडिया रिपोर्टों को यदि सही माने तो २७ दिसम्बर को मेरठ शहर के टीपी नगर थाने में खुलेआम मायावती के एक विधायक ने उनके जन्मदिन पार्टी को भव्य तरीके से मनाने के लिए चन्दा वसूला। टीपी नगर थाने में सिवालखास एरिया के बीएसपी विधायक विनोद हरित ने डेरा डालकर बहिन मायावती के जन्मदिन के जलसे के लिए चन्दा वसूला। शनिवार सुबह थाने में अपने समर्थको के साथ २ घंटे तक हरित ने डेरा डालकर सुश्री के फरमानों की जमकर धज्जियाँ उड़ाई, लेकिन नतीजा सिफर। मायावती को इस बात की उस दिन जानकारी ही नही हुई, क्योंकी उस दिन वो मशगूल थी मनोज गुप्ता को पीट-पीटकर बड़ी ही बेरहमी से मारने वाले अपनी ही पार्टी के विधायक शेखर तिवारी के नार्को टेस्ट कराने सम्बन्धी बयान मीडिया को देने में। हर मामलों की तरह इस मामले पर भी अब लीपापोती होने लगी है। सभी इस अप्रत्याशित अतीत को भूलने में लग गए है, सिवाय इंजिनियर के परिजनों के। इंजिनियर के बेटे और उसकी अभी-अभी अस्पताल से आई माँ से तो कोई हाल पूछे....की अब वो क्या करेगी। बीएसपी समेत अभी सियासी दल अपनी-अपनी सियासी रोटियां सेंकने में जुट गए हैं। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री इस मामले पर भी राजनीति करने से बाज नही आ रही है। उनके इस बयान से की, तिवारी इसके पहले बीजेपी और कांग्रेस में थे, तो कहीं यह सब उन पार्टियों के इशारों पर तो नही हुआ... पर शर्म आती है। हर तरफ़, जिधर देखो...उधर नजर आ रही है सिर्फ़ आनेवाले चुनावों में वोट जुटाने की ललक। सर्व धर्म समभाव का नारा देकर सत्ता के गलियारों तक पहुँची मायावती का यह नारा अब कहाँ लुप्त हो गया। जरा हरित की बेशर्मी को भी सुन लीजिये.....उन्होंने बड़े बेबाक तरीके से इस पूरे मामले पर अपनी सफाई देते हुए कहा की भाई मैं तो जनसेवक हूँ। थाने में मैं सुनवाई के लिए आया था, और भला अगर वहां किसी ने बहनजी के लिए चन्दा दे भी दिया तो तो भला मैं इसमें क्या कर सकता हूँ। जब कोई दे रहा है.....तो भला मैं क्यों न लूँ। मैंने किसी से कोई जबरदस्ती नही की है। बकौल हरित ऊपर से तीन लाख रूपये चन्दा देने का फरमान आया था, जो की मैंने दस दिन पहले ही भेज दिया है। तो अब बताये यह सब क्या है। किसी ने चन्दा देकर अपने नम्बर बना लिए हैं तो कोई अभी बनाने में जुटा हुआ है आलाकमान की नजरों में अपने नम्बर।

यहाँ मैं आपको बताता चलूँ की ये नम्बर जुड़ते हुए काम आते है हर बार होने वाले चुनावों में। यही उनकी अंकतालिका है और यही उनका है चरित्र प्रमाण पत्र। बात यहाँ है आम आदमी की......जो दिन भर मेहनत करके अपने लिए दो जून की रोटी का इंतजाम करता है......और उसे भुगतनी पड़ती है सत्ता के शीर्ष में बैठे लोगों की करतूत की सजा।

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