....बस इतनी ही शक्ति दी गयी है चुनाव आयोग को। आयोग की क्या सिर्फ़ इतनी ही जिम्मेदारी है की वो शांतिपूर्व तरीके से चुनाव कराये और पार्टियों को बिन मांगी नेक सलाह दे। सलाह भी कोई जरूरी नही है की कोई माने या न मने। जब किसी भी पार्टी को चुनाव आयोग की बातें या फिर यूँ कह ले की सलाह ही नही माननी तो क्यो इतना हल्ला होता है की इधर फलांने आचार संहिता का उल्लंघन कर दिया तो उधर फलां ने। जो जिसके मन में आए बके और जो जिसके मन में आए करे।
यहाँ पर विषपुरूष यानी वरुण गाँधी के भड़काऊ भाषण के मामले का जिक्र हो रहा है। आए दिन भाजपाई और कुछ कथित हिंदू संघटन बार-बार इस बात पर जोर दे रहे हैं की वरुण के साथ ग़लत हो रहा है, वरुण के साथ अन्याय हो रहा है। इस बार के आम चुनावों में यदि सबसे ज्यादा हो-हल्ला हो रहा है, तो सिर्फ़ वरुण के भड़काऊ भाषण के मामले पर ही है। आयोग का वरुण पर फैसला भी आ गया है की उन्होंने जमकर खुल्लम खुल्ला आचार संहिता की धज्जियाँ उडाईहै, लेकिन इस फैसले का क्या कोई आचार डालेगा। आयोग ने तो भाजपा को यहाँ तक सलाह दे डाली की उन्हें आम चुनावों से दूर रखा जाए। वरुण की भगवा पार्टी के दिग्गज तो खुलेआम बयानबाजियां कर रहे हैं की आयोग अपना काम करे। उसका काम सिर्फ़ बेहतर तरीके से चुनाव कराना है न की किसी के बारे में ग़लत तरीके से बयानदेना। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को देखो तो वो कह रहे हैं की वरुण तो चुनाव लडेगा ही और उनने तो तब हदें पार कर दी जब यह कहा की मैं तो उसके प्रचार की लिए पीलीभीत जाऊंगा, हमें किसी से कोई फर्क नही पड़ता। बेंदाजी की हदें पार हो रही हैं। उधर भाजपा के पीऍम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी (जो की इस समय पाक के ऑनलाइन अखबारों में अपने आप को फादर ऑफ़ नेशन शो कर रहे हैं। ) भी कुछ कम नही हैं। वो भी कह रहे हैं की वरुण तो चुनाव लड़कर ही रहेगा। इन्हे क्या है......एक फायर ब्रांड मिलने की खुशी है, जो इनके दिमाग को सांतवे आसमान पर ले जा रही है। यहाँ मैं यह कह रहा हूँ की आयोग को क्यों न इतने अधिकार दिए जाए की यदि कोई उम्मीदवार आचार संहिता का उल्लंघन करता है है तो उसकी जांच के बाद उम्मीदवारी ही रद कर दी जाए। जानकारों का कहना है की आयोग सिर्फ़ अपनी सलाह दे सकता है....इसके अलावा और कुछ भी नही कर सकता....तो फिर क्या करोगे ऐसी सलाह का। जो सजायाफ्ता हो या फिर मानसिक रूप से विशिप्त हो आदि कारणों के चलते आयोग चुनाव ladne से रोक सकता है। जब कोई ग़लत है, तो उसे ग़लत kahne में क्यों भाजपा के दिग्गज gurez कर रहे हैं। ऊपर से आयोग की vishswaniyta पर sawaliya nishaan लगा रहे हैं। साथ ही यह भी kahne से बाज नही आ रहे हैं की वह भाजपा के साथ भेदभाव कर रहा है और वो किसी के हाथों की kathputli है। यह tamasha roj का है। रोज का यही तमाशा है। दक्षिण में कोई ठाकरे नाम का जीव यह कह रहा की ये गाँधी हमारा है तो उत्तर में आडवाणी और राजनाथ। जो ग़लत है तो उसे डंके की चोट पर ग़लत क्यों नही कहा जा रहा। हाथ काटने वाले गाँधी की जरूरत राजनाथ को भी है और आडवाणी को भी। बाल ठाकरे भी इस मामले में कुछ कम नही हैं, उन्होंने तो ऐसे कामों के लिए एक सेना भी गठित कर ली है। चले जाते ठाकरे मुंबई हमलों को अंजाम देने वाले दहशतगर्दों से लड़ने। तब कहीं नजर नही आए, लेकिन ऐसे हाथ काटने वालों की न्यायालयको जरूरत नही है....विश्वास है हमें अपनी न्यायपालिका पर। और शायद इसीलए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वरुण को दोषी पाते हुए उनकी मुकदमा रद करने की याचिका खारिज कर दी। पर बेशर्म वरुण को देखिये तो उन्होंने यहाँ तक कह डाला की अब मैं सुप्रीम कोर्ट जाऊंगा। अरे वरुण यदि न्यायालयमें न्याय होता है तो उसको भी न्याय मिलेगा, जिसके ख़िलाफ़ भड़काऊ बातें कही है। आपको कोई हक़ नही बनता की आप बेगुनाहों के हाथ काटें चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। या फिर किसी और जाती का। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ये सिर्फ़ आपको बानगी मात्र है...अगर आपको समझ में आ रहा है तो समझ जाइये और सुधार लीजिये अपने आप को.....लेकिन मुझे पता है की आप ऐसा नही करेंगे।
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