Wednesday, October 1, 2008

जन्नत के साढे पाँच कदम......

अमिय बड़ा खुश था, जब से उसके कदम
जन्नत में पड़े।
कौन नही चाहता, आख़िर उसके कदम भी
जन्नत में पड़े।
जब से आँखें चार हुई, तब से जन्नत में ही
गोते लगा रहा था।
फिर क्या था, शुरू हो गया सपनो के महल
बनने का सिलसिला।
ईट भी आ गया और गारा भी, मतवाला हो
ख़ुद जुट गया महल बनाने में।
मदमस्त भोरें को जरा भी अहसास न था कि, महल
बनाने को कुछ और भी चाहिए।
मन में कुछ उलझन और बैचैनी लिए, जोड़ता
चला जा रहा था ईट से ईट।
क्या पता था अपनी धुन में रमे भोरें को
कि, उसकी नींव ही कमजोर है।
पल-पल नीचे गिरते जा रहे गारे को, उठा-उठा
कर जोड़ता चला गया।
अचानक धड़ाम कि आवाज के साथ, ज्यों ही
वो बिस्तर से नीचे गिरा।
रेत की तरह बिखर गया, बेफिक्र भोरें का
सपनो का महल..........।

1 comment:

Anonymous said...

baba aapke sapno ka mahal to dah gaya...andaaj bhi wahi tha jaisa aksar hota hai.....lekin koi baat nahi....ab to mahal bhi banega aur sapne bhi pure honge....jiski haqiqat bhi jamini hogi aur neev bhi patthar ka....