हर रोज होती है मेरी मैं के साथ लड़ाई।
वो कहता है की मैं बड़ा तो वो कहता है की मैं।
इसी बहस से ही जग में होता है उजियारा।
तो इसी के साथ पसर जाता है चहूँ ओर
और अँधियारा।
और अँधियारा।
चांदनी रात भी इनकी कोई चैन से नही गुजरती।
सपनों में भी ठानते हैं ये एक-दूसरे से रार।
एक दिन मैंने मैं से पूछा, बता तेरा वजूद क्या है।
झल्लाए मैं ने कहा जिस दिन मैं नही, उस
दिन तू नही।
दिन तू नही।
शून्य से शिखर तक का रास्ता मेरे से ही
होकर जाता है।
होकर जाता है।
जिस दिन मैंने साथ छोड़ा उस दिन तू कुछ नही।
जिसका मैं नही उसका इस धरा में कोई वजूद नही।
अब मैं ने पूछा........बता तेरी रजा क्या है।
घबराए मैंने न आव देखा न ताव....... ।
सहमा-सहमा बोला जिसका तू नही उसका
मैं नही.... ।
मैं नही.... ।
.........साथ ही बोला चल अपनों के लिए
तू भी समर्पित।
तू भी समर्पित।
1 comment:
दोस्त........ ये मै और मै के वजूद की लडाई काफ़ी दिलचस्प है और तब तक जारी रहेगी जब तक जिंदगी की गाड़ी दौड़ रही है .किसी भी चीज के दो पहलू होते हैं ,लेकिन एक तीसरा भी पहलू होता है जो हमेशा अदृश्य रहता है ,यह अदृश्य पहलू ही मैं है ,इश्वर है जो हमें ग़लत और सही का रास्ता बताता है ....अब फैसला आप का है कि आप कौन सा रास्ता चुनते हैं ....... लड़ाई जारी रखो,मंजिल से पहले भी और मंजिल के बाद भी......
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